मुझे सुलाने की खातिर,
कई पहरों तक तुम लोरी गाई ….
अनजान तेरे दुःख से मै सोया,
जननी, इतना धैर्य कहाँ से लायी ?
मेरी दुनिया तुमने जन्नत कर दी,
अपनी खुशियों की बलि चढ़ाई,
ये जन्नत तुझसे बढ़ कर नहीं माँ,
माँ, इतना बलिदान कहाँ से लायी ?
जब भी था मैं निरा अकेला,
साथ मेरे तू थी बन परछाई,
माँ, क्या तेरा हर पल मैं ही मैं हूँ ?
ये असीमित प्यार कहाँ से लायी ?
कई बार झिड़क पड़ता हूँ तुम पर,
शायद तुम छुप कर रोती भी होगी,
गुस्सा मुझपे क्यूँ नहीं हो करती ?
माँ, ये व्यवहार कहाँ से लायी ?
कैसे भगवान् पर करू भरोसा,
जिसको देखा नहीं है मैंने,
माँ, सच बता ना ! तु ही है ना वो ?
ये संसार कहाँ से लायी ?