उडना चाहती हूँ
उडना चाहती हूँ
टूटना चाहती हुँ, बिखरना चाहती हुँ.
बस एक बार में उड़ना चाहती हुँ.
बस एक बार में उड़ना चाहती हुँ.
गिर कर फिर उठना चाहती हुँ.
बस एक बार में चलना चाहती हुँ.
गिरूंगी नही तो सम्भालूंगी कैसे.
तेरे अांचल में रही तो सवरुंगी कैसे.
इस दुनिया से कब तक बचाओगे मुझे.
सामना करना कब सिखाओगे मुझे.
जब भी गिरूंगी खुद ही उठूंगी.
फिर न किसीके रोके से रुकूँगी.
गिर कर मुझको सँभालने दो.
अब तोह खुद से चलने दो.
तेरा आांचाल के साये में रहूंगी जब तक.
खुद से चलना न सीखूंगी तब तक.
आज गिरी तो फिर संभल जाउंगी.
पर फिर कभी गिरी तो उठ नही पाऊँगी.
इसीलिए गिरने दो,सँभालने दो.
खुद से मुझको चलने दो.
टूटू तो टूटने दो.
बिखरु तो बिखरने दो.
बस आज मुझको चलने दो.
बस आज मुझको उड़ने दो