खड़ा था जो दरिया के एक किनारे पे बना रखा था
आशियाना टहनी के किसी सहारे से आंधी आई और एक ही झटके में टूट गया
वह कैसे उजरा होगा कभी पूछो मुसाफिर दीवाने से
ना जाने लोग क्यों बिता देते है उम्र अपनों को आजमाने में
ना जाने लोग क्यों बिता देते है उम्र अपनों को आजमाने में
---- मुकेश मुसाफिर