गम की राहें हजार आने दो
जिंदगी अब यूँ ही गुजर जाने दो
बद्दुआ दिल से निकली जो
उसका भी असर हो जाने दो
रोक ली राह जो थी उल्फत की
उसका चेहरा नजर आ जाने दो
गमे फुर्सत में बैठे अब हम तो
गम से नजरें तो चार कर जाने दो
बहते अश्क अब इन आँखों से
मुझको पल भर जरा मुस्कराने दो
कह दो अब उनसे जाकर ये
घाव दिल के जरा भर जाने दो
कोई शिकवा न गिला इन राहों से
चंद बातें उधार कर जाने दो
गमे इश्क के अब इस दरिया से
मुझे डूबकर पार उतर जाने दो
पं संजय शर्मा "आक्रोश"