न जाने क्यों आज कोरा कागज़ रूठ गया हैं,
अलमारी के नीचे दब वो छुप कर बैठ गया है,
जिसके आने की कोई गुंजाईश ही नही,
फिर क्यों हर पल उसी का इंतज़ार बन गया है?
रहा न अब कोई चुपके से बातों को बताने वाला,
हर मुश्किल को इस कोरे कागज़ पर सुलझाने वाला,
अब तो काफी वक़्त बीत गया है,
फिर भी जाने क्यों कोरा कागज़ इतना रूठ गया हैं?
ऐसी जिम्मेदार बेटी, जो देखती थी देश के विकास का ख्वाब,
शिक्षा के लिए दूसरों को प्रेरित करना और किताबों से था उसमे आब,
नाज़ुक उम्र में ही किसी के घर की लक्ष्मी बन माँ बाप का बोझ कम कर दिया हैं,
यही तो वो वजह हैं जिससे कोरा कागज़ रूठ गया हैं |
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