जुमलाघुट्टी के साइड इफेक्ट

Author Photo Pandit Sanjay Sharma 'aakrosh' Sat 7th Oct 2017      Write your Article
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जुमलाघुट्टी के साइड इफेक्ट
जुमलाघुट्टी एक ऐसा प्रोडक्ट जिसकी लांचिग 2014 में की गई और इसे देश की जनता के आगे परोस भी दिया गया ।
तो हम बात करते हैं उन तमाम वादों की जो 2014 में जनता से किये गए । जनता भी उन वादों के मोहजाल में ऐसी फंस गई कि देश मे एक लंबे समय बाद एक प्रचंड बहुमत की सरकार अस्तित्व में आई । मोदी जी देश के प्रधान मंत्री बने ।
अब क्योंकि सरकार तो बन गई अब बात चुनावी वादों को पूरा करने की आई तो ये कहकर अपने उन वादों की खुद ही हवा निकाल दी गई कि ऐसे जुमले तो अक्सर चुनावों में बोल दिए जाते हैं ।
इसीलिए इसका यही सटीक शीर्षक बैठता है जुमलाघुट्टी के साइड इफेक्ट ।
अब यदि उन जुमलों की बात न करें तो शायद ये नाइंसाफी होगी जिनको मोदी जी ने देश की जनता को घोट घोट कर बड़े ही प्यार से पिलाया था ।
कुछ प्रमुख जुमले जो जनता को पिलाये गए
वो निम्न हैं-

1.हर एक खाते में 15 लाख रुपये
15 लाख तो छोड़ो 15 पैसे नहीं आये किसी के खाते में ।
2. आतंकवाद का खात्मा और एक सिर के बदले दस सिर लाएंगे ।
अब देश से कितना आतंकवाद खत्म हुआ और कितने सिर लाये गए ये बताने की यहां आवश्यकता नहीं है
3. बेरोजगारी दूर कर नोकरी देंगे ।
अब कितनी बेरोजगारी दूर हुई और कितने रोजगार के अवसर वरदान किये गए सब जानते हैं ।
4. मंहगाई भी एक बहुत बड़ा मुद्दा था जिसे दूर करने की बात कही गई थी ।
अब कितनी मंहगाई दूर हुई ये भी बताने की आवश्यकता नहीं है ।
कांग्रेस के समय जो मंहगाई डायन बनी हुई थी बीजेपी शासन में अब वो मंहगाई महबूबा बन गई है ।
5. किसानों की बदहाली दूर करेंगे और कर्ज माफ करेंगे ।
अब किसानों की कितनी बदहाली दूर हुई और कितना किसानों का कर्ज माफ हुआ यहां ये लिखने की आवश्यकता नहीं ।
किसान कर्ज के बोझ तले आत्महत्या करने को विवश हो रहा है । अब कुतर्क करने के लिए यहां कहने वाले ये कहने से भी नहीं चूकते कि क्या किसान कांग्रेस शासन में आत्महत्या नहीं करते थे ।
इसलिए यहां मैं ये कहना चाहूंगा कि सब जानते हैं कांग्रेस शासन में करोड़ों का किसान कर्ज माफ भी किया गया था अब हाल ही में उ प्र की बीजेपी सरकार के किसान कर्ज माफी के तो अफसाने भी लिखे जा चुके हैं ।
कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो ऐसे वादे रूपी जुमले बहुतायात में किये गए थे और उनको देश की जनता को घोट घोट कर पिलाया गया था ।
अगर हम मोदी जी की सरकार के कार्यकाल को देखें तो जिस प्रकार से नोटबन्दी के रूप में देश की जनता पर आनन फानन में बिना तैयारी के जो आर्थिक आपातकाल थोपा गया उसको कहीं से भी तर्कसंगत नहीं कहा जा सकता ।
नोटबन्दी के भी साइड इफेक्ट देखे गए अब कितना काला धन पकड़ा गया सब खुली किताब है ।
कितना आतंकवाद रुका कितनी नकली करेंसी रुकी ये सब भी लिखने की आवश्यकता नहीं है ।
इसी कड़ी में यदि जी एस टी की बात करें तो व्यापारी वर्ग में जी एस टी को लेकर आक्रोश सड़कों पर भी दिखाई दिया व्यापारी जी एस टी को लेकर आज भी असमंजस की सिथति में खड़ा है और उस दिन को कोस रहा है कि उसने बीजेपी को वोट देकर बहुत बड़ी भूल कर दी ।
बीजेपी शासन में गिरती हुई अर्थव्यवस्था और नोटबन्दी एवम जी एस टी को लेकर तो खुद बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने ही मोर्चा खोल रखा है अब किसकी बात को सच मन जाए बीजेपी पार्टी और मोदी जी की या फिर बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा की या फिर राहुल गांधी की जो लंबे समय से गिरती अर्थव्यवस्था और मंहगाई आदि मुद्दे पर इसके अलावा जी एस टी की टैक्स विसंगति और किसानों एवम बेरोजगारी को लेकर केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करते रहे हैं ।
कुल मिलाकर यदि केंद्र की सरकार का अब तक के कार्यकाल का विश्लेषण किया जाए तो इस नतीजे पर ही पहुंचा जाता है कि बातें ज्यादा काम कम यानी सिर्फ जनता को जुमलों की घुट्टी ही पिलाई जाती रही है जिसके साइड अफेक्ट अर्थशास्त्रियों को और देश की जनता को भी नजर आ रहे हैं और खुद इनकी ही पार्टी के नेता यशवंत सिन्हा को बखूबी नजर आ रहे हैं
अब वो बात अलग है कि जुमलाघुट्टी पिलाने वालों को साइड इफेक्ट इसलिए नजर नहीं आ रहे क्योंकि उनकी आंखों पर सत्ता के अहंकार की पट्टी बंधी हुई है ।
पं संजय शर्मा की कलम से

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Tujhe apna banayenge hum.....


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शब्द शब्द में गहराई है...

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पर एक आंसू का कतरा न गिरे ध्यान रखना पड़ता.

उदास है मेरी निगाहें,
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