गुजरात के इस प्रतिष्ठापूर्ण दंगल की हलचल पूरे देश मे सुनी जा सकती है ।
गुजरात के इस दंगल में एक लंबे समय से गुजरात के सिंहासन पर काबिज बीजेपी और प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है ।
शायद यही कारण है कि प्रतिष्ठा की इस महा जंग को फतह करने के लिए खुद मोदी जी तो पसीना बहा ही रहे हैं उनका साथ देने के लिए पूरा बीजेपी संगठन और केंद्र सरकार के मंत्रियों की एक पूरी फ़ौज गुजरात में अच्छे दिनों की वकालत करते देखे जा सकते हैं ।
जबकि कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी अपने भाषणों और ट्वीट के जरिये केंद्र सरकार के अच्छे दिन की धज्जिया उड़ाते नजर आ रहे हैं ।
राहुल गांधी ने अपने आक्रामक तेवरों के चलते गुजरात की जनता को ये सोचने को विवश कर दिया है कि क्या वाकई देश मे और गुजरात मे कभी अच्छे दिन आये थे या फिर अच्छे दिन के नाम पर राष्ट्रवाद के नाम पर बीजेपी अपना सत्ता हासिल करने का हित ही साधती रही है ।
गुजरात का चुनावी घमासान इस कदर गर्माहट ले चुका है कि मोदी जी चुनावी सभाओं में इमोशनल कार्ड खेलते नजर आने लगे जैसे- मैं गुजरात का बेटा हूँ मैंने चाय बेची है देश नहीं बेचा वगैरह वगैरह ।
अब यहां प्रश्न ये उठता है कि यदि वाकई गुजरात का विकास हुआ है तो मोदी माना गुजरात से हैं लेकिन उनको गुजरात की जनता को अपने गुजरात का बेटा होने की दुहाई क्यों देनी पड़ रही है उनको क्यों मजबूर होना पड़ा गुजरात की जनता को ये अहसास कराने के लिए कि वे गुजरात के बेटे हैं ।
वैसे भी जहाँ जहाँ चुनाव होते हैं मोदी जी उस प्रदेश से रिश्ता जोड़ने में देर नहीं लगाते ।
दूसरी ओर राहुल गांधी अपने आक्रामक शब्द बाणों के जरिये पूरी बीजेपी पार्टी और केंद्र सरकार को असहज करते नजर आते हैं अब वो चाहें बीजेपी अध्यक्ष के बेटे जय शाह के शाही विकास की पठकथा हो चाहें राफेल डील की पठकथा और चाहें शौर्य गाथा की पठकथा हो इन सबके साथ साथ राहुल गांधी गुजरात के विकास की बात भी उठाते नजर आते हैं ।
इसके अलावा राहुल गांधी ने जिस प्रकार मन्दिर मन्दिर जाकर माथा टेका है उससे भी बीजेपी के नेताओं की बेचेनी साफ देखी जा सकती है ।
गुजरात मे लम्बे समय से पाटीदार नेता आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं पाटीदारों की आरक्षण सम्बन्धी मांगों को बीजेपी क्यों अनदेखा करती रही आज उसी का नतीजा है कि पाटीदार नेता हार्दिक पटेल गुजरात से बीजेपी का बोरिया बिस्तर बंधवाने को कटिबद्ध नजर आते हैं ।
मोदी जी कहते हैं कि कांग्रेस के पास न तो नीति है न नीयत है और न ही नेता है ।
अब यदि नीति और नीयत की बात की जाए तो किस नीति और नीयत के तहत देश मे नोटबन्दी और विसंगति पूर्ण जीएसटी को लागू किया गया ।
नोटबन्दी का परिणाम देश की गरीब जनता ने झेला और जीएसटी की विसंगति को व्यापारी झेल रहे हैं ।
यदि वाकई केंद्र सरकार के पास कोई नीति थी तो फिर क्या कारण था कि जीएसटी में बदलाव दर बदलाव किए जाते रहे ।
अब यदि केंद सरकार की नीति और नीयत सही थी तो चुनाव के चलते ही जीएसटी में बदलाव क्यों किये गए यदि नीति सही होती तो एक सरल और सुविधापूर्ण जीएसटी पहले ही लागू क्यों नहीं किया गया ।
नीति नीयत के बाद बात आती है कि कांग्रेस के पास नेता नहीं
कांग्रेस के पास यदि नेता नहीं तो क्या कारण है कि राहुल गांधी के आक्रामक तेवरों का जबाव देने के लिए देश के प्रधानमंत्री एवम मंत्रियों की फौज और बीजेपी संगठन को सारे कामकाज छोड़ लगातार गुजरात मे पसीना बहाना पड़ रहा है ।
मोदी जी क्यों गुजरात की जनता को अपने गुजरात का बेटा होने की दुहाई दे रहे हैं ?
बीजेपी और मोदी जी का कहना है कि कांग्रेस एक गरीब के बेटे को प्रधानमंत्री के रूप में बर्दाश्त नहीं कर पा रही है ।
अब यहां ये बताना लाजिमी है कि जब एक गरीब का बेटा सांसद ही बन जाता है तो सारी गरीबी दूर हो जाती है चहेतों का शाही विकास भी हो जाता है । जबकि मोदी जी तो देश के प्रधानमंत्री हैं अब वो कहाँ से गरीब हुए ?
मोदी जी ने गुजरात की चुनावी सभाओं में अपने भाषणों में कांग्रेस को विकास के नाम पर चुनाव लड़ने की चुनोती दी थी अब खुद मोदी जी अपने भाषणों में वंशवाद और इमोशनल कार्ड खेलते नजर आते हैं ।
इसलिए कहना पड़ता है कि फिर वही वंशवाद व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोपों के बीच विकास गुमशुदा होकर पागल हो गया है ।
अब गुजरात के इस महादंगल के परिणाम का ऊँट किस करवट बैठेगा ये तो गुजरात के आने वाले चुनाव परिणाम ही बताएंगे लेकिन गुजरात चुनाव में अकेले राहुल गांधी के तरकश के तीरों ने देश के प्रधानमंत्री और मंत्रियों की फौज के साथ बीजेपी संगठन को काम पर लगा पसीना बहाने को मजबूर कर दिया है ।
पं संजय शर्मा की कलम से