इस गगन को हमदर्द बनाने का मन करता है,
हवाओ को निगाहों पर से महसूस करने का मन करता है,
मुश्किलों मे पेड़ की छाया मे अक्सर बैठा करते है लोग,
उस छाया की कसम, दो पल सुकून देने के लिए वह धुप से वकालत करता है,
इस गगन को हमदर्द बनाने का मन करता है....
नींद आती नही वक्त का पीछा करके,
घुटन जाती नही महज़ ये लव्ज़ सोचा करके,
अंधेरे की लहरों मे डूब तो जाते है हम पर,
रौशनी पाने का वह एक नौका का काम करता है,
इस गगन को हमदर्द बनाने का मन करता है....
दिन चढ़ता है एक नई उमंग से,
दिन ढलता है आशा की नई पहल से,
इस दिन के ही महत्व को जाना करते है सब,
पर भूल जाते है की इस रात के बाद ही नई तरंग का आगाज़ होता है,
इस गगन को हमदर्द बनाने का मन करता है....
बारिश की तरह है मेरी ज़िन्दगी
कभी सुख में साथ देती है, तो कभी दुःख में साथी बन जाती है,
पर में ये कैसे भूल जाऊ,
की ये बारिश की ज़िन्दगी भी तो गगन ही प्रदान करता है
इस गगन को हमदर्द बनाने का मन करता है.....