एक अमीर आदमी की शादी विदुषी महिला से हुई।
आदमी हमेशा अपनी पत्नी से
तर्क-वितर्क में पराजित हो जाता था।
एक दिन पत्नी ने कहा की औरते, पुरूषो से
किसी मामले में कम नहीं होती।
पुरूष ने कहा ठिक है,
मैं दो साल के लिये तुमसे दूर जा रहा हूँ।
इन दो सालो में एक महल,व्यापार में मुनाफा और एक बच्चा पैदा कर के दिखाओ।
पुरूष चला गया,
विदुषी ने अपने कर्मचारियो में कर्तव्यबोध और
ईमानदारी का गुण
काफी भर दिया।
उनके पगार बढ़ा दिये,
खुद प्रत्येक काम में कर्मचारियों कि मदद करने लगी।
व्यापार दिन-दुनी रात चौगुणी बढ़ने लगी थी।
एक साल के अंदर विदुषि महिला ने महल बनवा लिया।
विदुषी ने दस गाय खरीदे,
खुद उनकी देखभाल करती थी।
उनके दूध से काफी उन्नत किस्म
की दही जमाकर
'दही वाली गुजरी' का वेश
बनाकर शहर बेचने जाती।
वेश बनाकर रोज अपने पति को दही बेचती,
और अपने मोहपाश में फँसाती।
कुछ दिन उसने अपने पति का सानिध्य, और आलिंगन पाश भी पाया।
उसके पति ने 'दही वाली गुजरी'
समझ .... उसको अपनी सोने
की अँगुठी भेंट की ।
कूछ माह बाद विदुषी माँ भी बन गई।
समय पूरा होने पर पुरूष आया।
महल और चमकता व्यापार देख काफी प्रसन्न हुआ।
पर जैसे ही बिवी के गोद में बच्चा देखा,
आगबबूला हो गया।
और क्रोधित हो चिल्ला पड़ा,
ये किसका पाप ले आई।
तब विदूषि ने अपने पति को सारी बाते बताई ...
और
दही वाली गुजरी को दी ...उसके
सोने की अँगूठी दिखाई।
फिर पूछा-ः
स्वामी अगर उस दिन
'दही वाली गुजरी के जगह मैं
ना होती... तो...?
शायद इस 'तो' का उत्तर पूरी पुरूष प्रजाती के
पास नहीं है।