नोटबन्दी काले धन के सौदागरो के लिए शाही दावत और गरीबों के लिए बन गई आफत
भाजपा सर्जीकल सर्जीकल स्ट्राइक पर सेना की बहादुरी का श्रेय ढोल बजा बजाकर खुद और आर एस एस को दे रही थी और पूरे देश में सर्जीकल स्ट्राइक का खुद श्रेय लेते हुए अपने हॉर्डिंग तक लगवा रही थी अब इस नोटबन्दी के बाद देश में मचे हाहाकार और नोटबन्दी के दौरान बैंकों की लाइन में लगकर मौत के आगोश में समाने वाले बेगुनाह लोगों का पाप भी अपने सर लेने का साहस दिखाए इसके आलावा जिस प्रकार बिना तैयारी के ये तुगलकी फरमान थोपा गया इसकी तमाम कमियां निकल कर बाहर आई जिसमे बैंकों की संलिप्तता के साथ अन्य लोग भी इसमें लिप्त पाये गए ये भी किसी से छिपा नहीं हाँ ये बात अलग है सरकार ये कहकर खुद ही अपनी पीठ ठोक ले कि जिन लोगों ने बैंकों की मदद से अपने काले धन को सफेद किया है वो पकड़े जा रहे हैं या फिर पकड़े जायेंगे क्या सरकार ये बताएगी कि क्या ये सरकार कि बहुत बड़ी चूक नहीं है फिर क्या यही तैयारी थी सरकार की जहां एक आम आदमी अपने एक एक रूपये के लिए बैंकों की लाइन में मारा मारा फिर रहा है धक्के खा रहा अपनी जान गंवा रहा है वहीं दूसरी ओर काले धन के सौदागरों से नए नोटों की लाखों करोड़ों की बरामदगी सरकार की कार्यशैली और विश्वसनीयता पर एक बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा देती है इन सब बातों से सिर्फ एक ही निष्कर्ष निकलता है कि सरकार की मशीनरी पर काले धन के सौदागरों का नेटवर्क भारी पड़ गया यदि आपने ठोक बजाकर नोटबन्दी का तानाबाना बुना था तो इसमें इतने छेद क्यों छोड़ दिए गए क्राइम हुआ क्राइम करने वाले लोग पकड़े गए या पकड़े जायेंगे ये कैसी तैयारी थी सरकार की काले धन के सौदागरों को काले धन को सफेद करने का क्राइम करने का मौका दे दिया और फिर यहां ये बात भी गौर करने वाली है कितना रुपया सफेद किया गया इस बात का भी कोई अंदाजा नहीं लगा सकता हाँ कितना पकड़ा गया वो दिख रहा है इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि सरकार की नाक के नीचे क्राइम हुआ क्या सरकार में इतना साहस है कि इस चूक का सेहरा भी अपने सर लेने का साहस दिखा सके ।
यहां इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि एक आम आदमी के लिए इस नोटबन्दी को देशभक्ति की परिभाषा से गड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया गया इस प्रकरण में कुछ उन लोगों की भी संलिप्तता पाई गई जो आम आदमी को नोटबन्दी प्रकरण में देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे थे और अपने हित साध रहे थे और सरकार सिर्फ ये कहकर हवा में तीर चला रही थी कि इस नोटबन्दी में पूरा देश साथ है जिसमे कुछ मिडिया के लोग भी सरकार के सुर में सुर मिलाकर एकतरफा रिपोर्ट दिखाकर हवा मई ही तीर चला रहे थे जबकि सच्चाई इसके विपरीत थी इसमें एक पक्ष और भी था वो गरीब किसान मजदूर और वो आम आदमी जो रोज कुआं खोदता रोज पानी पीता था उसकी पीड़ा को उन चंद मिडिया के लोगों ने दिखाना उचित नहीं समझा क्योंकि सरकार की शान में बट्टा लग जाता देश के सामने वो भयावह सच आ जाता कि इस नोटबन्दी की बदइंतजामी ने गरीब आदमी की रोजी रोटी पर भी ग्रहण लगा दिया । सरकार कह रही है कि 50 दिन में हालात ठीक हो जायेंगे ये कहकर भी सरकार लोगों को नहीं सिर्फ अपने आपको बहला रही है जबकि सरकार भी जानती है कि रायता बुरी तरह से फैला हुआ है जो कि 50 दिन में नहीं समेटा जा सकता ।
कुल मिलाकर इस नोटबन्दी प्रकरण का एक ही नतीजा निकलता है कि अपने अदूरदर्शी फैसले और बदइंतजामी ने आम आदमी को दर्द तकलीफ और मानसिक यंत्रणा के अलावा और कुछ नहीं दिया ।
हाँ सरकार में अगर हौसला है तो सर्जीकल स्ट्राइक पर सेना की बहादुरी का सेहरा खुद लेने के बाद नोटबन्दी में बदइंतजामी और बैंकों में काले धन के सौदागरों की सेंध का सेहरा भी खुद लेने का साहस दिखाए ।
पं संजय शर्मा की कलम से
नोट-उक्त ब्लॉग भारत मे नोटबन्दी के समय लिखा गया था ।