Tuesday, 20 December 2016
तुगलकी फरमान का एक और चाबुक
आज जिस प्रकार से केंद्र की सरकार द्वारा हर रोज नए फरमानों का चाबुक जनता की पीठ पर मारा जा रहा है वो किसी से छिपा नहीं है
जनता द्वारा पाँच हजार की रकम ही एक खाते में बैंक में जमा करायी जा सकती है इससे ऊपर जमा कराने पर बकायदा साक्षात्कार लिया जायेगा ।
क्या मतलब हुआ इस फरमान का क्या काले धन के जमाखोर सरकार के इस साक्षात्कार का सामना करने का लिए बैंक जायेंगे वो लोग तो अपना काला पीला कर चुके और फिर उनको तो सरकार ने शुरू में ही कई प्रकार के रास्ते प्रदान कर दिए थे अब वो चाहें बैंक की मिलीभगत से रुपया सफ़ेद करने का मामला रहा हो या अन्य वगैरह वगैरह जगह से रु सफेद करने का मामला रहा हो ।
बैंक में वही आम आदमी अपनी ख़ून पसीने की कमाई का रुपया जमा करने जायेगा या जा रहा है जो शायद बैंक की भीड़ की वजह से अब तक अपना रुपया जमा नहीं कर पाया था कि अचानक सरकार के तुगलकी फरमान का एक और चाबुक उस आम आदमी की पीठ पर पड़ गया ।
यहां एक बात और देखने वाली है कि पहले दिन से अब तक सरकार के बदल बदल कर फरमान आ रहे हैं । ये कैसी तैयारी थी सरकार की । ये कैसा होमवर्क किया था सरकार ने कि उन्हें बार बार अपने नियम बदलने पढ़ रहे हैं । शायद गिरगिट भी इतने रंग नहीं बदलता होगा जितने कि सरकार ने नोटबन्दी पर अपने फरमान बदले हैं । ऐसा लगता है कि सरकार ने एक ऐसा अदूरदर्शी एक्स्पेरिमेंट किया था नोटबन्दी का जिसने आम आदमी को दर्द तकलीफ के आलावा अभी तक कुछ भी नहीं दिया है और वो प्रयोग अब तक के हालात पर गौर करने के बाद असफल ही साबित हुआ है । सरकार के इस प्रयोग ने आम आदमी की हालत पतली करके रख दी ।
प्रधानमन्त्री जी जो शुरू में कह रहे थे कि 50 दिन के बाद कोई समस्या नहीं रहेगी । उनके भी बयान में अब 50 दिन के बाद धीरे धीरे सिथति सामान्य होने लगेगी ये कहा जा रहा है अब इस धीरे धीरे सिथति सामान्य का क्या मतलब हुआ ये शायद प्रधानमन्त्री जी ही बेहतर बता सकते हैं । प्रधानमन्त्री जी ने अपने भाषणों में कहा कि ढाई लाख रु तक जमा में कोई पूछताछ नहीं होगी अब 5 हजार से ऊपर जमा पर बैंक द्वारा साक्षात्कार लिया जा रहा है । दरअसल इस नोटबन्दी पर प्रधानमन्त्री जी खुद तो भृमित हैं हीं जनता को भी भृमित् कर उलझनों में जकड़ रहे हैं । शायद उन्हें खुद नहीं पता उन्हें करना क्या है ।
पर कुल मिलाकर हकीकत ये है कि सरकार के नोटबन्दी से लेकर हर तुगलकी फरमान का चाबुक हर बार आम आदमी की ही पीठ पर क्यों पढ़ रहा है ?
पं संजय शर्मा की कलम से