Sunday, 9 July 2017
टोरंट पावर आगरा पर उ प्र की सरकारें और जन प्रतिनधि मेहरबान क्यों ?
नयी सरकार के लिए जनमत आ चुका है। भारतीय जनता पार्टी तीन चैथाई बहुमत से उत्तर प्रदेश में सरकार बना रही है। अब आगरा के लोगों को टोरेंट के उत्पीडन से मुक्ति की आस जगी है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगे आम नागरिकों को गिरवी रख देने के सरकारी कुचक्र के खिलाफ आगरा के लोग पिछले सात साल से संघर्ष कर रहे हैं। इस संघर्ष ने इन सात सालों में व्यापक रूप अख्तियार कर लिया है। जिसमे विपक्षी पार्टियों सहित अनेक सामजिक संस्थाओं ने भी अपनी अहम भूमिका निभाई है। टोरंट पावर कंपनी की अराजकता, शोषण और लूट के खिलाफ आगरा के लोगों का आंदोलन और विरोध बड़े स्तर पर है। जिसमे शहरी जनता से लेकर लाखों ग्रामीण जनता शामिल है। बसपा सरकार की करतूतों पर सपा सरकार द्वारा पर्दा डालने की कार्रवाई का आगरा की जनता ने 2017 के विधानसभा चुनाव में ‘यथोचित-परिणाम’ दिया है। सपा और बसपा का विधानसभा चुनावों में आगरा में जो हाल हुआ उसका एक कारण टोरेंट पावर भी है। दोनों दलों (सपा और बसपा) ने सत्ता में रहते टोरेंट की नीतियों को अपनाया और विपक्ष में रहते टोरेंट की नीतियों की खिलाफत की। आज आगरा के लोग टोरंट पावर कंपनी की अराजकता और अत्याचार की तुलना अंग्रेजों की ईस्ट इंडिया कंपनी के अत्याचार से करते हैं।
2010 में जब बसपा सरकार ने आगरा की शहरी क्षेत्र की बिजली का निजीकरण कर टोरेंट पावर को शहर की बिजली व्यवस्था सौंपने का निर्णय लिया उसका सभी विरोधी दलों (भाजपा, सपा, कांग्रेस और रालोद) ने जमकर इसका विरोध किया। 2012 के विधानसभा चुनावों में सपा ने भी टोरेंट को हटाने का जनता से वादा किया था। सपा के नेताओं ने 2012 के विधानसभा चुनावों में सरकार बनने के बाद टोरेंट की नाक में नकेल डालने की बात कही थी लेकिन हुआ सिर्फ ‘‘ढाक के तीन पात’’ सपा सरकार आने पर मामला सेट हो गया। भाजपा द्वारा इसे जनांदोलन बनाने की कोशिश की गयी। वहीं कांग्रेस और बसपा ने भी टोरेंट के खिलाफ बड़े प्रदर्शन किये। कई बार दक्षिणांचल और टोरेंट के दपतरों पर तालाबंदी और घेराव जैसे प्रदर्शन हुए। सभी दलों ने 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले टोरेंट पावर के खिलाफ खूब प्रदर्शन किये। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने भी सड़क पर उतरकर टोरेंट के खिलाफ खूब नारे लगाए और भाजपा के बड़े नेताओं ने सरकार बनने के बाद टोरेंट पर नकेल कसने की बात कही। अब देखने वाली बात होगी कि भाजपा के स्थानीय नेता सरकार बनने पर बसपा और सपा के नेताओं की तरह अपनी बात से मुकर जाएंगे या टोरेंट की बदइंतजामी का कोई स्थायी इंतजाम करेंगे। 2010 में टोरेंट द्वारा सिर्फ और सिर्फ नगर निगम सीमा वाले और शहरी क्षेत्रों को ही शामिल करने का अनुबंध हुआ था। लेकिन फिर भी टोरेंट पावर ने अपनी राजनैतिक और प्रशासनिक पहुँच के बल पर 24 गांवों (दहतोरा, घोंघई, नगला चुचाना, मगटई, कलवारी मुहम्मदपुर, अमरपुरा, विलसगंज, लकावली, तोरा, कलाल खेरिया, बुढेरा, बमरौली कटारा, नैनाना ब्राह्मण, नैनाना जाट, अजीजपुर, नगला, चमरौली, रजरईकुआंखेड़ा, महुआ खेडा, चोर नगरिया, मियांपुर, धनोली, आदि) गाँवों को भी जो कि नगर निगम सीमा वाले क्षेत्र से बाहर वाले गाँव थे को शामिल करा लिया। आज भी इन गाँवों के लाखों लोगों कि आजीविका खेती पर निर्भर है। तब से लेकर अब तक इन 24 गाँव के लोग टोरेंट पावर के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन उनकी परेशानी न तो शासन को दिखती है न प्रशासन को। आगरा के शहरी क्षेत्र के अलावा टोरेंट गाँवों के लोगों का हर दर्जे से उत्पीडन कर रही है। कभी टोरेंट पावर इन क्षेत्रों में बिना परमिशन के भूमिगत लाइन डालने पहुँच जाती है और कभी इन गाँव के लोगों को और दूसरे मामलों में फसाकर उनका उत्पीडन किया जाता है। 24 गाँव के लोग पिछले 7 साल से शासन प्रशासन से हर स्तर पर अपनी बिजली व्यवस्था को टोरेंट पावर से अलग कर दक्षिणांचल विधुत वितरण निगम लिमिटेड से जोड़ने कि मांग कर रहे हैं। लेकिन उनकी अहिंसक मांग पर अब तक न शासन ने गौर किया है न ही प्रशासन ने। अगर राजनैतिक लोगों की बात की जाए तो ये लोग सरकार में आने पर तो टोरेंट पावर के हितेषी बन जाते हैं और विपक्ष में होने पर टोरेंट पावर की खिलाफत करने लगते हैं। अब देखने वाली बात होगी कि अपनी कथनी और करनी में अंतर न होने की बात करने वाली भाजपा भी पिछली सरकारों की परम्परा का निर्वहन करती है या जनता की परेशानियों का निराकरण कराने का प्रयास करेगी। अगर बात की जाए टोरेंट पावर द्वारा किये जा रहे अंडरग्राउंड लाइन के काम की तो इसमें भी टोरेंट पावर बिना परमिशन के किसी भी क्षेत्र में अंडरग्राउंड लाइन का काम करने पहुँच जाती है। और इसका पीड़ित लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध किया गया। लेकिन उ प्र सरकारें और जनप्रतिनिधि खामोशी से टोरंट पावर आगरा की तानाशाही और दादागीरी को देखते रहते हैं