चुनाव का महीना आ चुका है और शीतयुद्ध भी प्रारंभ हो चुका है।जहाँ हिमांचल और गुजरात मे विधानसभा चुनाव होने वाले है,और इसमें जनता को तरह तरह के लालच देेकर बेवकूफ़ बनाया जा रहा है।
जहां कांग्रेस के छोटे नवाब पूरी तैयारी में लगे है फिर से सत्ता में आने के लिए वही नरेंद्र मोदी के अधीन भाजपा और अन्य सहयोगी दलों के साथ अपना दाव-पेंच लगा रही है।पर इसका विश्लेषण जनता को करना है अब इस भोली भाली जनता को सही उम्मीदवार को चुनना है ,एक तरफ जहां 3 सालो के सरकार की आलोचना हो रही है ,वही 60 सालों तक देश लूटने वालो पर फिर से भरोसे की उम्मीद लगाए जा रहे है।हमारी मनमोहन सरकार द्वारा 10 सालो में लगभग 23 योजनाए लागू की गई जो अधूरे रह गए जिसे हमारी तत्कालीन सरकार ने नाम बदल कर उसे फिर से लांच किया ताकि उसे पूरा किया जा सके।हमारी अर्थव्यवस्था भी बहुत अच्छी हो रही है।देश की सुरक्षा के भी पुख्ता इंतजाम किए जा रहे है ।पर अगर घर मे ही विविषण बैठे हो तो क्या हमारे देश की तरक्की संभव है??
नही हमे अपने सरकार के साथ मिल कर इस देश को मजबूत बनाना पड़ेगा ।आज हमारे घर की बहन -माँ सुरक्षित नही है और इसका जिम्मेवार भी हम है क्योंकि अगर हम शशक्त होंगे तो हमारे साथ और भी लोग खड़े होंगे।हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद जी ने कहा था"मेरा देश का काम नही है कि वो मुझे आगे बढ़ाए बल्कि ये हमारा काम है कि हम देश को आगे बढ़ाए" पर आज की राजनीति तो सिर्फ अपने फायदे के लिए लड़ी जाती है।किसी तरह एक दूसरे पर आरोप लगाते हुए गद्दी पर बैठना है ।पर सोचना जनता को है कि क्या आप फिर से 60 वर्षीय विफल सरकार को मौका देंगे या 3 वर्षीय सरकार को???
(इस आर्टिकल में मेरे अपने विचार है ,इस आर्टिकल से किसी भी विशेष समुदाय या व्यक्ति से कोई लेना देना नही है)
धन्यवाद
मनीष श्रीवास्तव