आवाज़-ए-अनादिल भी बयाबाँ तेरे बगैर
लगती है सबा ये भी पशिमाँ तेरे बगैर
महसुस कर रहा था आँगन में मैं तुझे
के सुना लग रहा था दालाँ तेरे बगैर
एक बार हथेली में मेरे फुल रख गयी
खिलती नहीं है तबसे कालियाँ तेरे बगैर
मैं तो अकेला ही किनारे से चल रहा
रुक सी गयी है बहती नदियाँ तेरे बगैर
खुशबु जो तेरी मुझ पर अभी तक है बरक़रार
दिन रात गुजरती है परेशाँ तेरे बगैर
ढूँढू कहा मैं तुझको पता अब तेरा बता
हर शेर है ग़ज़ल का बयाबाँ तेरे बगैर
"सोनू मिश्रा"