Saturday, 11 March 2017
उ प्र चुनाव के परिणाम--मोदी मैजिक या हिन्दू बनाम मुस्लिम वोटिंग ? या कुछ और ?
उ प्र के चुनाव परिणाम----
मोदी मैजिक या हिन्दू बनाम मुस्लिम वोटिंग ? या कुछ और ?
5 राज्यों के चुनाव परिणामों की बात अगर करें तो सबसे पहले बात उ प्र की करना ही लाजिमी है क्योंकि उ प्र देश का सबसे बड़ा राज्य है और प्रधानमंत्री भी इसी उ प्र के वाराणसी से सांसद भी हैं इसीलिए प्रधानमंत्री की नाक का सवाल भी उ प्र बना हुआ था।
इस उ प्र के चुनावों के परिणाम की बात करें तो यहां स्वयं मोदी जी और मोदी मैजिक की प्रतिष्ठा दाव पर लगी थी ।
1. कि क्या जातिगत आंकड़ों में उलझी उ प्र की राजनीती को मोदी मैजिक तोड़ पायेगा ?
2. क्या जाटव वोट मायावती से छिटक जायेगा ?
3. क्या उ प्र का मुस्लिम एक ही पार्टी को वोटिंग कर पायेगा ?
4. क्या कांग्रेस सपा के गठबन्धन को उ प्र स्वीकार कर पायेगा ?
5. क्या उ प्र के चुनाव में कानून व्यवस्था भी एक मुद्दा थी ?
6. क्या कांग्रेस सपा गठबन्धन को दोनों दलों के कार्यकर्ता स्वीकार कर पाएंगे ?
7. मायावती के आरोप अनुसार ई वी एम में गड़बड़ी की गई । क्या उ प्र में मोदी मैजिक ई वी एम की गड़बड़ी से सम्भव हुआ ?
अब बात की शुरुआत हम मोदी मैजिक से ही करते हैं अब क्योंकि 5 राज्यों के जो परिणाम आये हैं उनमें सिर्फ उ प्र और उत्तराखंड के परिणाम बीजेपी के पक्ष में गये हैं ।
अब यदि मोदी मैजिक था तो फिर वो मैजिक पंजाब गोवा और मणिपुर में क्यों नहीं चला बीजेपी को ये नहीं भूलना चाहिए ये राज्य भी भारत में ही हैं और मोदी जी भारत के प्रधानमंत्री ।
इस लिए हम फिर लौट कर उ प्र पर ही आते हैं और बीजेपी की सफलता का विश्लेषण करते हैं जिसे मोदी जी की सुनामी और मोदी मैजिक कहा जा रहा है ।
1. नोटबन्दी बीजेपी का एक प्री प्लान गेम था जो कि उ प्र के रण को फतह करने के लिए और विरोधियों की तैयारी को बाधित करने के लिए खेला गया एक दाव था ।
उस दाव का ही परिणाम था हर पार्टी नोटबन्दी के खेल में उलझ कर रह गई और बीजेपी अपनी चुनावी तैयारी को जमीन पर उतारने भी लग गई बीजेपी ने नोटबन्दी कर विरोधी पार्टीयों को इसके चक्रव्यूह में उलझा कर रख दिया विरोधी पार्टियों की चुनावी तैयारी धरी की धरी रह गईं विरोधी पार्टियां अपने प्रत्याशियों तक का चयन आखिरी समय में कर पाएं ।
दूसरी बात इस नोटबन्दी की ये रही कि इसे देशभक्ति की परिभाषा से परिभाषित कर इसको जबर्दस्त तरीक़े से प्रचारित कराया गया । इस प्रचार से नोटबन्दी रूपी देशभक्ति का असर खासतौर से युवा वर्ग और पहली बार मतदान करने वाले वर्ग पर जबरदस्त तरीके से पड़ा । उस युवा वर्ग (मुस्लिम युवा को छोड़कर, हर समाज के युवा वर्ग) अब वो युवा वर्ग और पहली बार मतदान करने वाले युवा वर्ग के लिए मोदी एक आइकन बन गए उस युवा वर्ग की नजर में मोदी सबसे बड़े देशभक्त और मोदी जी का विरोध करने वाले देशद्रोही और इस उ प्र के चुनाव परिणामों में बीजेपी के पक्ष में पहली बार वोटिंग करने वाले युवा वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता ।
उ प्र के चुनाव परिणामों में सपा शासन की बदतर कानून व्यवस्था ने भी अपनी भूमिका निभाई है ।
उ प्र के चुनाव के परिणाम ने साबित कर दिया कि उ प्र का मुस्लिम मतदाता कई जगह बंट गया ।
बीजेपी की इस सफलता में जाटव वोट और खास तौर से युवा जाटव वोट मायावती से छिटक कर बीजेपी की ओर चला गया मायावती की वोट रूपी इमारत ढह गई ।
अब बात कर लेते हैं अंतिम समय में परवान चढ़ी कांग्रेस और सपा की दोस्ती की----
इस दोस्ती की बात करने से पहले हमें थोड़ा पूर्व में जाना होगा जब कांग्रेस ने बड़े ही जोर शोर से 27 साल यू पी बेहाल का नारा लगाते हुए जबर्दस्त तरीके से अभियान चलाया था और वो उस अभियान से कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जबरदस्त ऊर्जा का भी संचार हुआ था और खासतौर से उ प्र की कानून व्यवस्था को लेकर सपा को घेरा था ।
नोटबन्दी के बाद अखिलेश यादव अपने परिवार की अंतर्कलह और सपा में विरासत की वर्चस्व की जंग से जूझ रहे थे उनकी भी चुनावी तैयारी बाधित ही होती रहीं और सपा में वर्चस्व की जंग को जीतने के बाद उ प्र की जनता में इस वर्चस्व की जंग का मैसेज शायद अच्छा नहीं गया क्योंकि अखिलेश यादव ने अपने पिता को जबरदस्ती हटाकर सपा अध्यक्ष का ताज पहना था ।
अंतिम समय में कांग्रेस और सपा की दोस्ती ने कांग्रेस के उन निष्ठावान कार्यकर्ताओं के उस सपने को एक ही झटके में तोड़ डाला जिसके तहत हर कार्यकर्ता 403 विधानसभा में अपनी तैयारी कर रहे थे और सपा सरकार से सड़कों पर मोर्चा ले रहे थे । इस गठबन्धन का नतीजा ये रहा कि दल तो मिले लेकिन दिल कार्यकर्ताओं के आखिर तक नहीं मिल पाए
।
27 साल यू पी बेहाल करते करते कांग्रेस और सपा यू पी को ये साथ पसन्द है का नारा लगाने लगे और शायद इसीलिए जनता को ये साथ भी पसन्द नहीं आया और परिणाम सबके सामने है ।
पं संजय शर्मा की कलम से