चंद्रमा
खामोश रात का चंद्रमा, क्यूं आज मुस्कराने लगा।
उदास "चंचल" की बाहो मे, कैसे दिल बहलाने लगा ॥॥
कुछ ऐसी उम्मीद नही थी,
बहार पतझड़ मे आने की।
जिंदगी ने कसम खाई थी,
आज अभी मर जाने की॥
फिर मुरझाया फुल ये कैसा, उपवन को महकाने लगा।
उदास "चंचल" की बाहो मे, कैसे दिल बहलाने लगा ॥१॥
आहभरी है दुनिया मेरी,
साथ आसू के गम रहता है।
जख्म हुये है दिल मे ऐसे,
अश्क नही ये खूं बहता है॥
किस्मत का ये मजाक कैसा, जख्म-ए-जिगर लहराने लगा।
उदास "चंचल" की बाहो मे, कैसे दिल बहलाने लगा ॥२॥
मिले हमसफर कई राह मे,
साथ सभी ने छोड दिया।
मैखाने ने साथ निभाया,
जीवन का रूख मोड दिया॥
मदहोशी का क्या जादू था, दर्द दवा बन जाने लगा॥
उदास "चंचल" की बाहो मे, ऐसे दिल बहलाने लगा ॥३॥