यादों की उन गलियों में
बेशक हम जाना भूल गए
भूले नहीं हम उन गलियों को
बस दिल लगाना भूल गए
नादान दिल की चाहत में
खुद को दीवाना भूल गए
अब तो अपनी जिंदगी में
बस मुस्कराना भूल गए
दर्दे दिल के ग़ाफ़िल होकर
मरहम लगाना भूल गए
गुजरी हुई यादों की खातिर
बस गुजरा जमाना भूल गए
गाये थे कभी इस दिल ने अपने
हम वो तराना भूल गए
यादों के भँवर में हम अपना
बस आशियाना भूल गए
हम तो अपनी गुरवत में
ये समझाना भूल गए
टूटे हुए दिल के टुकड़ों को हम
बस दफ़नाना भूल गए
पं संजय शर्मा 'आक्रोश'