काफी समय पहले की बात है, एक गाँव में एक रवि नाम का लड़का रहता था| वह बहुत ही गुस्से वाला था, छोटी-छोटी बात पर वह अपना आपा खो देता था और लोगों को भला-बुरा कह देता | रवि की इस आदत से परेशान होकर एक दिन उसके पापा ने उसे कीलों से भरा हुआ एक बैग दिया और कहा कि , ” अब जब भी तुम्हे गुस्सा आये तो तुम इस थैले में से एक कील निकालना और दिवार में ठोक देना |
पहले दिन रवि को चालीस बार गुस्सा आया और इतनी ही कीलें दिवार में ठोंक दी| पर धीरे-धीरे कीलों की संख्या कम होने लगी, उसे लगने लगा की कीलें ठोंकने में इतनी मेहनत लगती है इससे अच्छा है कि अपने गुस्से पर काबू किया जाए और अगले कुछ हफ्तों में रवि ने अपने गुस्से पर बहुत हद्द तक काबू कर लिया था | और फिर एक दिन ऐसा आया कि रवि ने पूरे दिन में एक बार भी गुस्सा नहीं किया |
जब उसने अपने पापा को ये बात बताई तो उन्होंने ने फिर उसे एक काम दे दिया, उन्होंने उससे कहा कि ,” अब हर उस दिन जब तुम एक बार भी गुस्सा ना करो इस दिवार से एक कील निकाल देना |”
रवि ने ऐसा ही किया, और फिर वो दिन भी आ गया जब रवि ने दिवार में लगी आखिरी कील को भी निकाल दिया, और अपने पापा को ख़ुशी से ये बात बतायी|
तब पापा ने उसका हाथ पकड़कर उस दिवार के पास ले गए, और बोले, ” रवि तुमने बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन क्या तुम दिवार में हुए छेदों को देख पा रहे हो | अब वो दिवार कभी भी वैसा नहीं बन सकता जैसा वो पहले था | जब तुम गुस्से में कुछ कहते हो तो वो शब्द भी इसी तरह सामने वाले व्यक्ति पर गहरे घाव छोड़ जाते हैं |”
इसलिए अगली बार अपना आपा खोने से पहले सोचना कि क्या आप भी किसी को दर्द देना चाहते हैं |